ड्रिल तथा ड्रिलिंग संक्रियाएँ (Drill and Drilling Operation)
Q. ड्रिल क्या है ?
उत्तर- ड्रिल (Drill) एक प्रकार का कटिंग टूल है जिसका प्रयोग किसी भी वस्तु या धातु में गोल छिद्र करने के लिया किया जाता है।
Q. ड्रिलिंग क्या है ?
उत्तर- ड्रिल द्वारा छिद्र करने की प्रक्रिया को ड्रिलिंग (Drilling) कहते है। तथा जिस मशीन द्वारा यह प्रक्रिया की जाती है। उसे ड्रिलिंग मशीन (Drilling Machine) कहते है।
ड्रिल के मुख्य भाग (Main Parts Of Drill)
- शैंक (Shank)
- बॉडी (Body)
- फ्लूट्स (Flutes)
- लैंड/मार्जिन (Land/Margin)
- बॉडी क्लीयरेंस (Body Clearance)
- बिंदु (Point)
- हील (Heel)
- वेब (Web)
- टैंग (Tang)
1. शैंक (Shank) – शैंक (Shank) डिल का वह प्लेन भाग है जो ड्रिल को मशीन में पकड़ने के काम लाया जाता है । यह ड्रिल के ऊपर का समतल भाग होता है।
शैंक दो प्रकार के होते हैं-
1. टेपर शैंक ( Taper shank ) – इस प्रकार का शैंक स्टैण्डर्ड टेपर में बनाया जाता है । यह प्रायः मोर्स टेपर ( morse taper ) होता है जिसके ऊपर का कुछ भाग चित्रानुसार दोनों साइडों से प्लेन करके टैंग ( tang ) बना दिया जाता है । यह टैग ही ड्रिल चक में पकड़ा जाता है । इस प्रकार की ड्रिल को ड्रिल चक से बाहर निकालने के लिए एक वैज ( wedge ) आकार का टूल प्रयोग किया जाता है , जिसे ड्रिफ्ट ( drift ) कहते हैं ।
2. स्ट्रेट शैंक ( Straight shank ) – इस प्रकार के शैंक का भाग समान्तर ( parallel ) या बेलनाकार ( cylindrical ) होता है । स्ट्रेट शैंक ड्रिल छोटे व्यास की ड्रिल के लिए प्रयोग किए जाते हैं । नीचे चित्र में स्टेट शैंक ड्रिल को दर्शाया गया है ।
2. बॉडी (Body) – ड्रिल का वह भाग है जिसमें स्पाइरल फ्लूट ( spiral flute ) कटा हुआ होता है , बॉडी कहलाता है । यह उसके डैड सेन्टर ( dead centre ) से लेकर नैक ( neck ) तक का भाग होता है । इस भाग में डैड सेन्टर से शैंक की ओर हल्का टेपर ( 0.05 मी से 100 मिमी ) रहता है जिस कारण कटिंग एज द्वारा होल बनने के पश्चात ड्रिल की बॉडी होल की दीवारों से रगड़ती हुई नहीं चलती है।
3. फ्लू ट्स (Flutes) – फ्लूट्स एक प्रकार के खाँचे होते हैं जोकि ड्रिल के घूमने पर धातु या पदार्थ की छीलन उतारते हैं । ये खाँचे ड्रिल की बॉडी में बने होते हैं । अधिक लम्बे ड्रिलों में तीन या अधिक फ्लूट्स भी बने होते हैं । इनके द्वारा निम्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है
- फ्लूट , ड्रिल में कटिंग एज का निर्माण करता है ।
- फ्लूट से होकर शीतलक आसानी से कटिंग एज तक पहुँच जाता है । इससे इन ड्रिलों की आयु बढ़ जाती है ।
- फ्लूट से होकर छीलन आसानी से बाहर आ जाती है , इसलिए अधिक लम्बे ड्रिलों में अधिक फ्लूट्स बनाए जाते हैं ।
4. लैण्ड/मार्जिन (Land/Margin) – लैण्ड के ऊपर कटिंग आकार में एक बहुत बारीक स्पाइरल आकार की उभरी हुई रेखा होती है जिसे मार्जिन कहते हैं । यह मार्जिन ही होल का आकार बनाती है । दो विपरीत मार्जिनों के बीच की दूरी ही ड्रिल का व्यास होती है ।
5. बॉडी क्लीयरैन्स (Body Clearance) – मार्जिन को छोड़कर लैण्ड का शेष भाग बॉडी क्लीयरैन्स कहलाता है । यह भाग होल की सतहों के साथ घर्षण नहीं करता है , क्योंकि इसका व्यास कुछ कम होता है जिसके कारण घर्षण कम हो जाता है ।
6. बिन्दु (Point) – डिल के आगे का वह भाग जोकि शंकु के आकार का होता है , बिन्दु कहलाता है । इसे चीजल एज ( chisel edge ) या डैड सेन्टर ( dead centre ) भी कहा जाता है ।
7. हील (Heel) – कटिंग एज के पीछे वाले भाग को हील कहते हैं । इस भाग को पीछे की ओर टेपर दिया जाता है जिससे कटिंग करते समय मात्र कटिंग एज ही जॉब की तली को स्पर्श करें ।
8. वैब (Web) – ड्रिल की बॉडी के बीच धातु का वह भाग जो उस पर बने फ्लूट्स के बीच में बचता है अर्थात् फ्लूट्स को पृथक् करता है वैब कहलाता है । प्वॉइण्ट से शैंक की ओर इसकी मोटाई अधिक होती जाती है । होती जा कहलातास के बीच
9. टैंग (Tang) – यह टेपर गैंक ड्रिल का वह भाग है , जो ड्रिलिंग मशीन के स्पिण्डल में फिट होता है । यह छोटा एवं चपटा होता है , जिससे कि इसे डिलिंग मशीन की सीट में फिट करने में आसानी होती है।